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मुझे तो वही अमरूद चाहिए

नमस्कार,

आज हम एक बहुत ही अच्छी कहानी सुनेंगे। 

अपाला नाम की एक छोटी सी बच्ची थी। वो अपने माता–पिता और दादा–दादी के साथ रहती थी। एक दिन जब अंधेरा हो गया तो सब के सब लेट गए और  गहरी नींद में सो गए। धीरे–धीरे रात बीतने लगी और फिर सुबह होने लगी। उसकी माँ और दादी वगैरह तो थोड़ा जल्दी जाग गईं पर अपाला अभी भी सो रही थी। 

उस समय नींद में अपाला एक सपना देखने लगी। क्या देखती है सपने में? सपने में देखती है वह सहेलियों के साथ शाम के समय खेलने जा रही है।

पढ़ाई के साथ–साथ खेलना भी ज़रूरी है ना। सभी को रोज़ खेलना ही चाहिए ताकि अपना शरीर एकदम फुर्तीला रहे और बीमारी भी ना लगे।

तो वो सहेलियों के साथ बड़ी देर तक खूब मन लगाकर खेली और अंधेरा होने पर वो सब बच्चियाँ वापस घर की ओर आने लगीं। अब क्या हुआ कि रास्ते में एक अमरूद का पेड़ था जिस पर पके–पके अमरूद लगे हुए थे। उनमें से एक–दो बच्चियाँ पेड़ पर चढ़ गईं और सबके लिए एक–दो, एक–दो अमरूद तोड़ लिए। 

रास्ते में अमरूद खाते हुए वो सब अपने–अपने घर पहुँच गईं। अपाला भी अपने घर पहुँच गई पर उसका आधा अमरूद अभी भी बचा हुआ था जिसे उसने एक टोकरी में रख दिया कि इसको बाद में खाऊँगी और हाथ–पैर धोने चली गई। ये सब सपने में हो रहा है।

और वैसे भी बाहर से आओ तो हाथ–पैर तो अवश्य धोने चाहिए ताकि बाहर की गंदगी, धूल वगैरह घर में ना फैल जाए।

सपने में आगे क्या हुआ कि जैसे ही वो हाथ–पैर धोकर आई और टोकरी से अमरूद उठाने लगी, तभी उसकी माँ ने आकर उसे जगा दिया कि, “बेटी अपाला, उठो, सुबह हो गई, मंजन करके नहा लो।”

अपाला पहले तो कुछ समझ ही नहीं पाई फिर बोली कि, ठीक है मैं मंजन करके और नहाकर आती हूँ। 

वो एक बहुत अच्छी बच्ची थी जो साफ़–सफाई का बहुत ध्यान रखती थी और सुबह मंजन करके ही कुछ खाती थी।

जैसे ही वो मंजन करके और नहाके आई, तो दादी से बोलने लगी कि मुझे अपना आधा अमरूद खाना है, वो बहुत ही मीठा है। दादी चौंक गई कि इसने अमरूद कब खाया। फिर दादी बोली कि, “नहीं बेटी, वो तुम सपना देख रही होगी, तुमने तो अभी कोई अमरूद आधा खाकर नहीं रखा।”

तो अपाला बोली, “अरे, ऐसे कैसे! मैं सच में खेलने गई थी और फिर अमरूद खाया था। कितना स्वादिष्ट था वो! मुझे तो वही अमरूद चाहिए।”

उसकी माँ और दादी, दोनों समझाने लगी कि ये सब सपने में हो रहा था। पर अपाला बार–बार बोलती कि, “सपने में कैसे! मैं खुद तो पेड़ पर चढ़ी थी और आधा खाकर बचा हुआ अमरूद इस टोकरी में रखा था। मुझे तो उसका स्वाद भी पता है। ये सब मैंने ही तो किया। ऐसा कैसे हो सकता है कि ये सब हुआ ही नहीं? मुझे तो वही अमरूद खाना है।”

वो दोनों फिर समझाने लगी कि, “बेटी, जो सपने में होता है, वो ऐसा लगता भर है, होता नहीं है। इसीलिए ज़िद मत करो, लो यह आम रखे हैं, अमरूद की जगह इन्हें खा लो।”

वो ना चाहते हुए भी आम की टोकरी के पास गई और एक आम उठाया। लेकिन अचानक से ना जाने क्या सोचकर वो एकदम चौंक गई, और उसका शरीर जम सा गया।

उसकी दादी बोली, “अरे! क्या हुआ? ऐसा क्या सोच रही?”

वो बोली, “एक सवाल उठा अचानक से मन में।”

दादी बोली, “पूछों”

वो बोली, “अभी आपने कहा था कि सपने में जो होता है वो बस लगता है कि सच में हो रहा है पर वैसा होता नहीं है।”

दादी बोली, “हाँ, तो?”

वो बोली, “तो सवाल ये है कि अभी मैं ये जो आम खा रही हूँ, ये सच में खा रही हूँ या बस मुझे ऐसा लग रहा है कि मैं खा रही हूँ? कहीं ये भी तो कोई सपना नहीं जो मैं देख रही हूँ?”

चूँकि उसकी दादी अच्छी–अच्छी किताबें पढ़ती थी, इसीलिए थोड़ा होशियार थी।

वो बोलीं, “बेटी, ये सवाल तो बहुत अच्छा पूछा तुमने पर अभी तो इसका मेरे पास यही जवाब है कि बिल्कुल हो सकता है कि ये जो तुम अभी आम खा रही हो, ये भी एक बहुत बड़े सपने में हो रहा हो। पर इस बात का पता तो सबको खुद ही मेहनत करके करना होता है।”

तो अपाला बोली, “और यह बात पता कैसे करते हैं?”

तो उसकी दादी बोली, “उसके लिए तुम्हें अच्छी–अच्छी किताबों को अपना दोस्त बनाना होगा और उन्हें खूब पढ़ना और समझने की कोशिश करनी होगी। साथ ही साथ बहुत सारे सवाल पूछने होंगे और उन्हीं किताबों में या अन्य स्रोतों से उन सवालों के जबाव ढूंढने होंगे।”

अपाला बोली, ”आज से किताबें मेरी दोस्त और मैं उन्हें रोज़ पढ़ा करूँगी, साथ ही साथ गहराई से समझने के लिए बहुत सारे सवाल किया करूँगी क्योंकि मुझे इस बात का पता तो करना ही करना है।”

उसकी दादी ने उसको बहुत सारी अच्छी–अच्छी किताबें लाकर दे दी, जिन्हें वो रोज़ पढ़ने लगी और सवाल पूछ–पूछकर समझने की कोशिश करने लगी।

और हमारी कहानी ख़त्म, पर अब एक सवाल है।

‘ये बताओ कि हमने ये जो कहानी सुनी, ये सच में सुनी या ये भी कोई सपना था?’

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