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एक मोड़ा किते हिरा गओ?

मताई–बाप: खूबई रात आ हो गई है, मोंगे–मोंगे पर रओ और सो जाओ अब!

मोड़ी–मोड़ा: आँहाँ, हमें नींदई नईं आ रई। पैलें एकाद किसाई सुना दो।

मताई–बाप: लो तो, सुनो।

गल्लन साल पैलें जंगल में एक स्कूल हतो तो। आश्रम कत ऊखों। ऊ आश्रम के लिगाँ से एक नदी भी बेउत ती। आश्रम में एनईं–एन मोड़ी–मोड़ा पढ़त ते। 

मोड़ी–मोड़ा: दोई जने पढ़त ते, मोड़ी और मोड़ा?

मताई–बाप: हओ, आज से भौतई–भौत पहले दोई जने पढ़त ते जैसे आज स्कूलन में पढ़त।

फिर का भओ के एक दिना आश्रम के जो गुरुजी हते ते, उन ने कछु मोड़न से कई के आश्रम खों भौत सारो सामान ल्याँऊने, सो तमन औरन में से दस जने नदी के दूसरे पार चय जाओ और सामान लेत आओ। 

उनन में से दस जने आए और कन लगे के ठीक है, हमन जा रए।

गुरुजी ने कई के ठीक है, तमन दसई जनें जाओ और जल्ली आ जज्जो।

अब उनन खों नदी में पैरवो तो आउत तो। कैसे? काय के आश्रम में पढ़ाओ तो जातई तो, संगे–संगे पैरवो, नाव चलावो जैसे और भी गल्लन काम करवो सिखाओ जात तो। पैरवो तो सबई खों आनई चज्जै।

तो बे औरें नदी के लिगाँ पौच के सोचन लगे के पैरके जावे के नाव में बैठके। उनई ने सोची के सामान जल्ली ल्याऊँने और उन्ना भींज गए अगर तो और अबेर हो जे सो नावअई से चलो। फिर बे दसई के दस नाव में बैठ गए।

तनक देर में जब बे औरें दूसरी तरफ उतरे तो एक मोड़ा कन लगो के गिन के देख लो, अपन दसई के दस आ गए, एकाद दुक के नदी में पैरवे तो नईं कूद गओ।

कई के नौनी कई हो तमने तो। फिर उनन में से एक मोड़ा कन लगो के सब जने एक लेन में ठाढ़ें हो जाओ, हम अब्बई हाल गिनत।

अब ऊँने गिनती शुरु करी– इकना एक, दूनी दो, तिरके तीन, चौके चार, पञ्चे पाँच, छक्के छे, सत्तें सात, अठ्ठे आठ और न्याम नौ। अरे, इते तो नौईं जने हैं। एक किंआएँ गओ? 

इत्ते में दूसरो मोड़ा कन लगो के तमन सब लेन में लगो और हमें गिनन दो, ईने सई से नईं गिनो हुज्जो।

दूसरे ने गिनती शुरु करी– इकना एक, दूनी दो, तिरके तीन, चौके चार, पञ्चे पाँच, छक्के छे, सत्तें सात, अठ्ठे आठ और न्याम नौ। हाँ रे, नौईं आ रए गिनती में तो।

ऐसें करके उनन सबने गिन–गिन के देखो पर हर बेर नौईं आवें गिनती में। तो उनन खों लगो के एक कोनऊँ नदी में आँ डूब गओ।  ऐई के माएँ बे सबई औरें उतई बुरओ मों करके बैठ गए के अब का करत?

तनक देर में का भओ के गुरुजी नदी कुदाऊँ आए कछु काम से और उन ने देखो के जे सब जने तो नदी के ऊ तरप बैठे हैं। सो वे गए नाव से और कन लगे के कया हो तमन खों, तमन इतई काय बैठे?

वे औरें कन लगे के हमन दस जनें आए ते पर एक नदी में बे गओ और अब हमन नौईं बचे। और एई के माय हमन इते ऐसे बैठे हैं अबै तक।

गुरुजी ने कई, अच्छा! एक बेर और गिनके बताओ हमें।

उनन में से एक मोड़ा ने फिर गिनवो शुरु करो— इकना एक, दूनी दो, तिरके तीन, चौके चार, पञ्चे पाँच, छक्के छे, सत्तें सात, अठ्ठे आठ और न्याम नौ। नौईं हैं गुरुजी।

गुरुजी ने उसकी उँगली, जिससे वो गिन रहा था, पकड़कर उसी की ओर करके कई—और जो है दस, हो गए पूरे दसई।

बे सब जनें कन लगे— हाँ रे, पूरे दसई तो हैं। 

फिर बे औरें गुरुजी से पूछन लगे के हमन औरें काय नहीं गिन पा रए ते सई सें?

गुरुजी ने कई— अपन खों सबसे पैलें खुदई खों देखने आउत या गिनने आउत। जबै भी कछु देखो या के करो, सबसे पैलें जेई पूँछों पनन से के जो को देख रओ या कर रओ और खुदई कर रए तो पूछो के काय कर रए।

फिर वे आगे कन लगे के जब कछु दिखाए तो कओ पनन से के ‘जो की खों आ दिख रओ? आँखन से तो दिखानो आ है, देखो कीने?‘

बे सबई जने कन लगे के ठीक है, गुरुजी। अब हमन जो बेर–बेर पूँछें के कछु भी काम खों को कर रओ और काय कर रओ; और अगर खुदई कर रए तो भी पूँछें के हम क्वाँयँ और काय कर रए।

गुरुजी ने कहा— शाबास, अब जाओ, सामान लेत आओ।

मताई–बाप: और अपनी किसा ख़तम। अब सोओ जल्ली

मोड़ी–मोड़ा: भौंत अच्छी किसा ती। हम खुदई ऐसईं पूँछें के कछु भी को कर रओ, काय कर रओ। (इत्तो के के, वो सो गओ)

[जा किसा वेदांत साहित्य में एक जानी–मानी किसा है, जीखों इते ई तरीके से कओ गओ जी सें समझ जाओ अपन]

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