मताई: रात आ हो गई है, मोंगे–मोंगे पर रओ और सो जाओ अब!
मोड़ी: आँहाँ, हमें ऊँग आई नईं रई।
मताई: आ रई होय चार नईं, आज तो सोऊँनई सोऊँने आएँ।
मोड़ी: काय?
मताई: कैसी काय? तमाओ ठरगजो भूत ठाढ़ों है बायरे।
मोड़ी: आँहाँ, ऐसी नई कओ, हमें ऐनई–ऐन डर लग रओ।
मताई: जबई तो के रए के पर रओ जल्ली, नईंतर वो इतई आ जे।
मोड़ी: जल्ली खोर उढ़ा दो हमाई, और मूड़ ढाँक दो, फिर भूत हमें देखई नई पे।
मताई: हओ, बिल्कुल मूड़ बायरे नई काड़िओ, नईंतर वो देख ले।
बाप: अरे, आज सूरज कियाँएँ से ऊँगों तो? मोड़ी इत्ते जल्ली कैंसे पर रई?
मताई: हल्ला नईं करो। बड़ीदारे तो परी है, ‘बायरे भूत है‘ जा कई जब।
मोड़ी: काय, साँसऊँ नोईं ठाढ़ों?
बाप: ठाढ़ो तो है।
मोड़ी: किते?
बाप: दोर के बायरे ठाढ़ों।
मताई: देखने है?
मोड़ी: आँहाँ, हमें तो डर लगत
बाप: आँहाँ, अब तो हम दिखाई के माने। आओ हमाए संगे।
(वे तीनईं जने दोर के बायरे गए)
मोड़ी: किते है इते?
मताई: सूद में जोन भींट है, ऊके पाछें दुको है।
(वे तीनईं जने भींट के लिगाँ गए)
मोड़ी: इते भी किते है?
मताई: अरे, इतई तो है, वो कुन आँखन से दिखात आ है।
मोड़ी: घरी भर खों एक जगाँ मोंगे मोंगे ठाड़ें रओ अपन, हमें सुनन दो
बाप: कया सुन रईं?
मोड़ी: भूत कछु कै रओ हुज्जे, ओइकी बातआ सुनने
मताई: हा हा हा! भूत कीं बातें अपन सुनई नईं सकत।
मोड़ी: अच्छा, तो हमें हाँतई लगा के देख लन दो।
मताई: भूत खों तम हाँत नईं लगा सकत और भूत भी तमें हाँत नईं लगा सकत।
मोड़ी: ऐसो का!
(वा सोचन लगी)
मताई: कया सोचन लगी, इतें ठाढ़ी–ठाढ़ी?
मोड़ी: हा, हा, हा; हा, हा हा……
मताई: काए, मो बा के काय हस रई?
मोड़ी: मोरी मताई, हमईंआँ मिले उल्लू बनावे! तेईने तो कई ती के भूत है बायरे, और अब के रई के बो खुदई दिखत, ना और कौंनऊँ खों देख सकत; ना कोऊ ऊखों सुन सकत और ना ही वो अपन खों छी सकत।
मताई: हाँ, सो?
मोड़ी: जो ना दिखत आ, ना बोलत आ और ना ही छी सकत, फिर तो ईको जोई मतलब है के ऐसो कछु होतई नईंया। और जो हेई नईंया, वो हमाओ का बिगारले!
हम तो तमाई बातन में आके डरा रए ते, पर आज से तो मोरी मताई ते जोन चार के लिज्जे पर भूत की बात पे मोय नई डरवा सकत।
चार हम अकेले क्याऊँ जावें, चार आदी रात के इंदआए में क्याऊँ रबें, और जोन बता रई आए सो रई आय, ध्यान भलाँईं रख ले पर ई बात से कभँऊँ नएँ डराएँ के इते भूत है या उते भूत है।
ऐसई टीवी और फोन में खुदई वे औरें झूठ–माँस को भूत आ दिखाउत, डरावे खों। पर अब हम डरअईं नईं। जो हेई नईंया, ऊसे तो पागलई डरे, हम तो नईं डरें अब से। और कोनऊ हमें अब उल्लू भी नईं बना सकत भूत की के के।
मताई: बात तो तेने नोनी कई। आज से हम भी भूत को नाव लेके नईं डराएँ तोय, काए के साँसँऊँ में भूत जैसो कछु होतन नईंया, बस ते टेम पे सो जाएँ गए।
मोड़ी: जा कई ना सई बात, चलो अब पर रबें।
(ऊके बाद वे औरें सोवे चले गए)