नमस्कार!
आज हम एक बहुत ही अच्छी कहानी सुनेंगे।
तो हुआ क्या कि एक बहुत बड़ा गाँव था। गाँव का क्या नाम था? गाँव का नाम था वेदांतपुर, क्या? वेदांतपुर। वेदांतपुर बहुत ही बड़ा था इसलिए उसमें अनेक प्रकार कीं वस्तुएँ थीं और विभिन्न प्रकार के लोग थे और बहुत सारे बच्चे रहते थे।
एक गली में चार बहुत अच्छे दोस्त रहते थे। उन चारों के क्या नाम थे? चारों में से एक का नाम था नचिकेता, दूसरे का श्वेतकेतु, तीसरे का सत्यकाम और चौथे का अथर्व।
चारों दोस्त साथ-साथ स्कूल जाते थे, साथ-साथ पढ़ाई करते थे, साथ-साथ खेलते थे।
क्या खेलते थे? अनेक प्रकार के खेल- गिल्ली-डंडा, कभी बैडमिंटन, कभी लगड़ी, कभी मिट्टी के ट्रैक्टर बना-बनाकर खेल रहे, कभी कंचो के साथ खेल रहे, छिपना-खोजना खेल रहे कभी, और क्रिकेट भी कभी-कभी जब कभी समय मिला।
एक दिन क्या हुआ कि शाम में जब ये चारों खेलने जाते थे, उस समय नचिकेता के घर बाकी तीनों बच्चे आए।
कौन-कौन तीनों? श्वेतकेतु, सत्यकाम और अथर्व। वो कहने लगे, \”नचिकेता, आज तो हम सबका खेलने का बहुत मन कर रहा है। आज तो कुछ भी हो जाए खेलना ही खेलना है।
नचिकेता बोले, \”ठीक है, अपना समय भी हो गया है खेलने का।\”
इस तरह वो चारों घर से थोड़े दूर जो (खेलने का) मैदान था, उधर के लिए निकल गए।
अब चूँकि चारों छोटे-छोटे बच्चे थे और किसी की सुनते नहीं थे, खेलने के लिए भी चल कर नहीं जाते थे, तेजी से दौड़ लगाते हुए जाते थे। तो रास्ते में पड़े हुए थे पत्थर। कुछ बुरे लोग होते हैं ना जो बेवजह ही जानवरों को पत्थर मारते हैं। कुत्तों को, गायों को या बिल्लियों इत्यादि को बेवजह ही मारते हैं। ऐसे ही किसी ने कुत्ते को पत्थर से मारा होगा और वही पत्थर रास्ते में सड़क पर पड़ा था।
ये चारों दौड़ते हुए जा रहे थे और जैसे ही पत्थर पर पैर पड़ा, श्वेतकेतु फिसलकर गिर पड़ा। और जैसे ही वह गिरा आसपास और भी पत्थर थे जिनसे उसके घुटने में चोट लग गई और रक्त बहने लगा।
उन चारों में नचिकेता उम्र में थोड़ा बड़ा था तो उसने तुरंत ही घुटने पर हाथ रखा जहाँ से रक्त बह रहा था ताकि रक्तप्रवाह को अवरुद्ध किया जा सके। उसके बाद सत्यकाम से बोला, \”देखो सत्यकाम, अपने दोस्त श्वेतकेतु को बहुत चोट लग गई, तुम घर चले जाओ और घर से किसी बड़े सदस्य को सूचित कर दो कि श्वेतकेतु फिसलकर गिर गया है और उसे चोट लग गई है जिससे रक्त बह रहा है। इसीलिए मरहमपट्टी के लिए डॉक्टर की लेके चलें।\” नचिकेता ने ऐसा बोला।
सत्यकाम बोला, \”मैं नहीं जा रहा। मेरा तो बहुत ही ज़्यादा मन कर रहा था खेलने का, मैंने पहले ही तुम्हें बताया था कि आज कुछ भी हो जाए खेलना ही खेलना है। आज तो मेरा खेलने का मन कर रहा है।\”
नचिकेता बोला, \”अच्छा, तुम नहीं जा रहे तो अथर्व तुम चले जाओ।\”
अथर्व कहने लगा, \”अरे! मेरा भी खेलने का ही मन कर रहा है। मैं भी तो सत्यकाम के साथ आया था तुम्हारे पास और कहा था कि आज तो हमारा खेलने का मन कर रहा है और खेलना ही खेलना है।\”
नचिकेता सोचने लगा और अपने–आप से कहने लगा कि ये लोग कैसे हैं! इधर श्वेतकेतु का रक्त बह रहा है और ये कह रहे हैं कि मन ही नहीं कर रहा।
\”क्या किया जाए?\” नचिकेता ने सोचा।
थोड़ी देर तक सोचने के बाद नचिकेता दोनों से बोला, \”अच्छा ये बताओ, तुम दोनों का क्या मन कर रहा?\”
दोनों बोले, \”हम लोगों का तो खेलने का मन कर रहा है।\”
नचिकेता बोला, \”अच्छा, अब ये बताओ कि अगर कोई घर नहीं जाएगा और इधर ही खेलेगा तो क्या होगा?\”
वे दोनों थोड़ा सोच कर बोले, \”क्या होगा? हमें नहीं पता।\”
नचिकेता कहने लगा, \”दिख नहीं रह है क्या यह सामने! श्वेतकेतु का रक्त बह रहा है। अगर उसका ऐसे ही रक्त बहता रहा तो वह बीमार नहीं हो जाएगा, उसको कुछ हो नहीं जाएगा?\”
दोनों बोले, \”हाँ, इसको तो कुछ हो जाएगा।\”
नचिकेता बोला, \”तुम ऐसा चाहते हो?\”
दोनों बोले, \”नहीं\”
नचिकेता बोला, \”अगर नहीं चाहते तो घर जाओ ताकि मरहम पट्टी हो सके।\”
दोनों बोले, \”मन तो हम दोनों का कर ही नहीं रहा, मन तो खेलने का कर रहा।\”
नचिकेता बोला, \”मन भले न कर रहा रहा हो लेकिन क्या तुम चाहते हो कि श्वेतकेतु को कुछ हो जाए? तुम्हें अच्छा लगेगा?\”
वे बोले, \”नहीं\”
नचिकेता बोला, \” तो फिर मन कर रहा हो या ना कर रहा हो, जो अभी ज़रूरी है वह करो।\”
दोनों बोले, \”ऐसा क्यों?, हमें तो यह बताया गया कि जो मन करे वही करों।\”
नचिकेता कहने लगा, \”नहीं, ऐसा नहीं होता। जो मन करे वह नहीं करना होता, जो जब ज़रूरी हो और सही हो वह करना होता है। अभी क्या ज़रूरी है – खेलना या चोट की मरहम पट्टी करना?\”
दोनों बोले, \”ज़रूरी तो पट्टी है।\”
नचिकेता: तो फिर! जाओ चाहे मन कर रहा हो या न कर रहा हो।
इस तरीके से नचिकेता ने उन दोनों को समझाया।
फिर दोनों बोले, \”ठीक है! मन तो नहीं कर रहा लेकिन तुम कह रहे कि अभी यह ज़रूरी है और सही है इसीलिए हम लोग जा रहे और घर पर किसी से कह कर डॉक्टर को लेकर आते हैं।\”
इस तरह वो बड़ी मुश्किल से माने और घर जाकर किसी बड़े सदस्य के साथ डॉक्टर को लेकर आए।
डॉक्टर ने मरहम पट्टी की और श्वेतकेतु को देख कर चलने को कहा। साथ ही तीनों-चारों से देखकर चलने को कहा।
डॉक्टर ने श्वेतकेतु को 3-4 दिन आराम करने के लिए भी कहा जब तक चोट ठीक नहीं हो जाती।
तीन-चार दिन बाद श्वेतकेतु ठीक हो गया और वो सब फिर से खेलने जाने लगे।
एक दिन वो ऐसे ही खेल रहे थे तब नचिकेता ने सत्यकाम और अथर्व से कहा, \” क्या तुम लोगों को याद है? आज हम चारों एक साथ खेल रहे हैं, उस दिन तो तुम लोग बड़ा बोल रहे थे कि मेरा मन ही नहीं कर रहा, मेरा मन ही नहीं कर रहा। उस दिन अगर मन की सुनी होती या मन की करी होती तो क्या आज श्वेतकेतु के साथ खेल पाते?\”
वो दोनों बोले, \”हाँ, ठीक कहा तुमने। उस दिन अगर हम दोनों ने मन की करी होती तो पता नहीं क्या होता। आज के बाद हम दोनों मन की नहीं करेंगे, जो सही होगा, जो ज़रूरी होगा जिस समय, वही करेंगे।\”
नचिकेता ने कहा, \”शाबाश! आज से हम जिस समय जो सही और ज़रूरी होगा वही करेंगे फिर चाहे मन करे या ना करे, चाहे अच्छा लगे लगे या बुरा।”