‘नया’, ‘साल’, ‘शुभता’

new year's day, 2025, greeting card

कहते हैं कि परिवर्तन संसार का नियम है; इसको सुनकर ऐसा लग सकता है मानो कि ये संसार कुछ है जिसमें परिवर्तन होता है, परंतु एक गहरी दृष्टि से देखो तो पता चलेगा कि बात ये कही जा रही है – जहाँ परिवर्तन होते रहते हैं उसी का नाम संसार है; परिवर्तनों से अलग संसार कोई स्थायी इकाई नहीं है।
तो हमारे देखे परिवर्तन तो लगातार हो रहे हैं, पर क्या सब परिवर्तनों की प्रकृति एक जैसी है? उदाहरण के लिए, कमरे में फर्श पर पड़ी झाड़ू को उठाकर कोने में खड़ा कर दिया जाए तो झाड़ू की स्थिति में परिवर्तन तो निसंदेह हुआ है, पर क्या सच में झाड़ू की इस स्थिति को ‘नया’ कहा जा सकता है? शायद कह भी सकते हैं, पर उस नएपन में कोई खास नयापन नहीं, गहराई नहीं।

इसी तरह से अगला उदाहरण लेते हैं, गेहूँ का बीज का पिसकर आटा बनना और फिर आटे का रोटी बनना परिवर्तन को निश्चित तौर पर है, और इस परिवर्तन में झाड़ू वाले परिवर्तन से ज़्यादा नयापन, ज़्यादा गहराई है, पर फिर भी क्या इस परिवर्तन को सचमुच एक मौलिक परिवर्तन कहा जा सकता है? नहीं।
एक और उदाहरण लेते हैं, बीज का अंकुरित होकर पौधा बनना और पौधे का पेड़ बनना, ये परिवर्तन झाड़ू और गेहूँ से ज़्यादा गहरा, ज़्यादा नया है, पर फिर भी क्या सचमुच कुछ एकदम ही नया घटित हुआ है? नहीं।

तो झाड़ू का खड़ा रखे जाने में, गेहूँ का रोटी बन जाने में, बीज का पौधा बन जाने में कोई मौलिकता, कोई नयापन नहीं है, क्योंकि जो भी नया निकलकर आया है, वो पूरी तरह से पुराने पर आश्रित है; और जो कुछ भी पुराने पर आश्रित होगा, उसमें बहुत कुछ पुराना उपस्थित रहेगा। और इसीलिए फिर, गहरे अर्थों में, मौलिक दृष्टि से उसे ‘नया’ नहीं कहा जा सकता।

तो संसार, जिसे प्रकृति भी कहते हैं, में सारे परिवर्तन बस नाम, रूप, आकार के तल पर होते हैं और इन परिवर्तनों का उत्पाद पूर्वस्थिति पर निर्भर रहता है, इसीलिए उसे नया नहीं कहा जा सकता।

तो फिर नया क्या है? फिर नया सिर्फ़ वही हो सकता है जो किसी भी परिवर्तन का उत्पाद नहीं है, मतलब जो सदा है ही, सिर्फ़ वही नया हो सकता है। शास्त्रीय रूप से जिसे कहते हैं कि जो नित्य है, मात्र वही नूतन है।

तो क्या सामान्य जीवन में हो रहे परिवर्तनों को नया कहने की कोई उपयोगिता ही नहीं है? नहीं, ऐसा नहीं है, उपयोगिता है। और उपयोगिता यही है कि हर जिस परिवर्तन को हम नया बोलते हैं, वो हमें उसकी याद दिलाए जो सचमुच नया है, नित्य है। क्योंकि हमारी भी सतत् प्यास कुछ नया पा जाने की, या कहें नया ही हो जाने की है। नाम, रूप, आकार में हो रहे परिवर्तन तो हम पहले ही इतने देख चुके हैं, पर उनसे कहाँ प्यास शांत हुई होती है।

तो फिर दिन या तारीख के बदल जाने में, साल का अंक बदल जाने में कुछ नयापन नहीं है? साल के बदल जाने में यही नयापन हो सकता है कि ये ‘नया’ साल जीवन को वास्तविक नूतनता से परिचय कराए। नहीं तो साल तो हर साल बदलता है, उसमें क्या ही ऐसा होता है जो पिछले साल में नहीं था।

जहाँ तक बात साल की, वर्ष की है, तो वो तो हमने अपनी सुविधा के अनुसार समय की अवधि मापने के लिए बनाया एक पैमाना है। मानव सभ्यता जब ये भी नहीं जानती थी कि सूरज पृथ्वी के चक्कर लगाता है या पृथ्वी सूरज का, तब भी समय को मापने के लिए दिन, घड़ी, प्रहर, मास और वर्ष आदि मानदंड बना लिए गए थे। कुछ वर्ष पहले ही कहीं साल में दस महीने हुआ करते थे। तो साल जो कि हमने अपनी ही सुविधा के लिए अपने हिसाब से बनाया है और जो अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग माना जाता है, उसमें अपनेआप में कोई नयापन नहीं हो सकता।

जब भी नया साल (या कोई अन्य त्यौहार) आता है तो हम एक-दूसरे को शुभकामनाएँ देते हैं। शुभकामना, शुभ और कामना का मिश्रित शब्द है। तो पहली बात यह कि वास्तव में शुभ क्या है, और दूसरी बात, कामना किस चीज़ की होनी चाहिए।
नए वर्ष के संदर्भ में, शुभता मात्र उसमें है जो जीवन को नया करे, ऐसा नया जो पुराने पर ज़रा भी आश्रित नहीं हैं (नहीं तो वो नया नहीं होगा), और फिर कामना भी सिर्फ़ वही होनी चाहिए जो शुभ हो।

जैसे किसी का जीवन सदा से अंधेरे में कैद रहा हो, तो उसके लिए जीवन का प्रकाश हो जाना, या प्रकाश की एक किरण का ही पा जाना नयापन है, क्योंकि प्रकाश की ही उसकी कामना , उसके लिए प्रकाश अंधेरे से अलग कुछ है। अंधेरी कैद में, कष्ट में था, प्रकाश में कष्ट से मुक्ति है। और क्या नया हो सकता है (हमारे लिए)? अपनी कमज़ोरियों, दुर्बलताओं और भ्रमों को चुनौति देकर उनसे मुक्त होते जाना सचमुच वो चीज़ है जिसे जीवन में नया कहा जा सकता है। बोध की तरफ, स्पष्टता की तरफ़, आज़ादी की तरफ़ बढ़ने को नया कहा जा सकता है।


आज की राष्ट्रीय और वैश्विक स्थितियों के संदर्भ में अंधेरों की कैद अनेक नाम लेकर अस्तित्व पर खतरे में रूप में मँडरा रही है। वर्ष 2024 के वो सब खतरे अगर वैसे ही बने रहते हैं, या और बढ़ते हैं (और ऐसा होने के ही आसार ज़्यादा दिख रहे हैं) तो फिर 2025 नया साल कैसा हो जाएगा। चौथे स्टेज का कैंसर तीसरे स्टेज के कैंसर से अलग नहीं होता, नया नहीं होता।

इसीलिए वर्ष 2025 को सही अर्थों में नया बनाने के लिए, शुभ बनाने के लिए जीवन को प्रकाशित करना होगा, नया करना होगा। और यही उद्देश्य है नए वर्ष के इस उत्सव का। और यही संकल्प होना चाहिए साल के प्रथम दिन पर लेने का।

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