माँ: रात हो गई है, चुपचाप लेटो और सो जाओ।
बच्ची: नहीं, मुझे नींद नहीं आ रही।
माँ: आ रही हो या नहीं, आज तो सोना ही पड़ेगा।
बच्ची: क्यों?
माँ: कैसी क्यों! बाहर भूत खड़ा हुआ है।
बच्ची: नहीं, ऐसा मत बोलो, मुझे बहुत डर लग रहा है।
माँ: तभी तो कह रही हूँ कि जल्दी लेट जाओ, नहीं तो वो इधर ही आ जाएगा।
बच्ची: जल्दी से मेरी रजाई ओढ़ा दो, और सिर ढाँक दो। फिर भूत मुझे देख ही नहीं पाएगा।
माँ: हाँ, सिर बिल्कुल भी बाहर मत निकालना नहीं तो वो देख लेगा।
पिताजी: अरे, आज सूरज किस दिशा से उगा था? बच्ची इतने जल्दी कैसे लेट गई?
माँ: शोर मत करो। बड़ी मुश्किल से तो लेटी है, जब कहा कि बाहर भूत खड़ा है।
बच्ची: क्यों, सच में नहीं खड़ा है क्या?
पिताजी: खड़ा तो है।
बच्ची: कहाँ?
पिताजी: दरवाजे के बाहर खड़ा है।
माँ: देखना है?
बच्ची: नहीं, मुझे तो डर लगता है।
पिताजी: नहीं, अब तो हम दिखाकर ही मानेंगे। आओ, हमारे साथ।
(तीनों बाहर जाते हैं)
बच्ची: यहाँ कहाँ है?
माँ: सामने जो दीवार है, उसके पीछे छिपा है।
(तीनों सामने वाली दीवार के पास जाते हैं)
बच्ची: यहाँ भी कहाँ है?
माँ: अरे, इधर ही तो है, वो आँखों से दिखाई थोड़ी ही देता है।
बच्ची: थोड़ी देर के लिए शांत खड़े रहते हैं हम, मुझे सुनने दो।
पिताजी: क्या सुन रही हो?
बच्ची: भूत कुछ बोल तो रहा होगा, उसी की बात ही सुननी है।
माँ: हा, हा, हा! भूत की बातें हम सुन ही नहीं सकते।
बच्ची: अच्छा, तो मुझे हाथ ही लगा कर ही देख लेने दो।
माँ: भूत को तुम हाथ भी नहीं लगा सकतीं और भूत भी तुम्हें हाथ नहीं लगा सकता।
बच्ची: ऐसा क्या…. (वह सोचने लगती है)
माँ: क्यी सोचने लगी, यहाँ खड़ी–खड़ी?
बच्ची: हा, हा, हा! हा, हा, हा हा
माँ: क्या हुआ, मुँह फाड़कर क्यों हँस रही?
बच्ची: मेरी माँ, मैं ही मिली क्या मूरख बनाने के लिए! तुमने तो कहा था कि भूत बाहर खड़ा है और अब कह रही हो कि वो ना ही वो खुद दिखाई देता है और ना ही किसी और को देख सकता है; ना ही उसे कोई सुन सकता है और ना ही हाथ से छू सकता है।
माँ: हाँ, तो?
बच्ची: जो ना ही दिखाई देता है, ना बोलता है और जिसे ना ही छू सकते हैं, फिर तो इसका यही अर्थ हुआ कि ऐसा कुछ होता ही नहीं है। और जो है ही नहीं, वो मेरा क्या बिगाड़ लेगा।
मैं तो तुम्हारी बातों में आकर डर ही गई थी। लेकिन मेरी माँ, आज से तुम जो चाहे कहना पर इस भूत की बात करके डरवा नहीं सकतीं।
चाहे मैं अकेले कहीं जाऊँ, चाहे आधी रात का अंधेरा हो, और कोई भी बात रही आए, सावधानी भले रखलें लेकिन इस बात से कभी नहीं डरूँगी कि इधर से भूत आ जाएगा या उधर से।
इसी तरह टीवी औऱ फोन में भी झूठा ही भूत को दिखाया जाता है, डराने के लिए। पर अब मैं डरूँगी ही नहीं। जो है ही नहीं, उससे तो कोई पागल ही डरेगा, मैं तो नहीं डरूँगी। और कोई मुझे अब भूत का नाम लेकर मूर्ख भी नहीं बना सकता।
माँ: बात तो तुमने सही कही। आज से मैं भी भूत का नाम लेकर तुम्हें नहीं डराऊँगी, क्यों? क्योंकि सच में भूत जैसा कुछ होता ही नहीं। बस समय पर सो जाया तुम।
बच्ची: यह कही ना सही बात! चलो अब लेटते हैं।।
(उसके बाद वो तीनों सोने चले गए)