राजनीति, लोकतन्त्र और आम जन

देश में राजनैतिक दलों की राजनीति का स्तर कभी भी अच्छा नहीं रहा, पर अब ये जिस स्तर पर गिरता जा रहा है, उसकी कोई इन्तहाँ ही नहीं। आदर्श स्थिति तो ये है कि जो वास्तविक और महत्व के मुद्दे हैं, उन पर बहसे हो, गठबन्धन बने, गठबन्धन टूटे और फिर उन्हीं मुद्दे के आधार पर वोट डाले जाएँ। उससे निचला स्तर है कि दो कौड़ी के मुद्दों पर सारी बहस हो और लोग वोट भी उसी आधार पर दें, और फिर आता है घटिया स्तर जिसमें मुद्दे कुछ नहीं हैं, बस तुम पिछड़े हो, दलित हो या किसी और…

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जलवायु परिवर्तन — मुद्दा जन-जन का

ये न राजनैतिक समस्या है, न धार्मिक समस्या है, न ही किसी विशिष्ट विचारधारा का मुद्दा है, ये मनुष्यों और अन्य सभी जीवों के लिए अस्तित्वगत समस्या है। ये स्पष्टीकरण शुरुआत में इसीलिए आवश्यक हो जाता है क्योंकि मुद्दे को देखने से पहले यही देखा जाता है कि ये किस राजनैतिक या धार्मिक धारा के पक्ष में है या किस तरह की विचारधारा के विरोध में। राजनीति, (तथाकथित) धर्म, संकुचित राष्ट्रवादिता, जातीयता, आर्थिक स्थिति और न जाने कितनी अन्य विभाजनकारी दीवारें समाज में इस कदर घर कर गयीं हैं कि कोई भी मुद्दा या उसकी प्रासंगिकता इन्हीं दीवारों में कैद…

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